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बुधवार, 23 नवंबर 2011


कैसे भूल सकता है
 कोई नवाबो की इस रोड की शान 
वो नहर से निकलती पगडण्डी 
 वो शिव  मंदिर की गूंजती घंटी
 शाहजी की दुकान
 शर्माजी का मकान 
अरुणोदय की रंगत
  भट्टजी  की बसासत 
गुजरे है कई बचपन 
खिले है वहा यौवन 
 आंखों आंखों में होती बाते
 प्यारी सी वो यादें
 नवाबो की उस नगरी में 
 शेरों की कई मादें(हमारे आदरनीय मामाजी लोगों के घर) 
भूलेंगी न वो यादें
 बिसरी हुई वो बाते .......

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