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बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

कविता
 
मैं बहुत देर तक शब्दों को
पकडती रही,
कविता रचने का प्रयास करती रही
और शब्द उड़ते रहे
आगे -पीछे
दाएँ -बाएं
बनते-बिगडते रहे 
कभी बादल बन
विस्तृत आकाश की सीमा 
लांघने की कोशिश में विफल
कभी चाँद की चांदनी 
में पिघल गए 
तो कभी सूरज की गर्मी 
में जल गए। 
मैं बहुत देर तक दिल और 
दिमाग को मिलने का 
प्रयास करती रही
कविता रचने का प्रयास करती रही .
शब्दों की धार 
कभी तीखी होकर 
अपनों को घायल कर देती   
तो कभी पनीली हो
दिशा बदल देती
मैं उन्हे कागजों में समेटने का
प्रयास करती रही।
मैं बहुत देर तक शब्दों को
पकडती रही, 
कविता रचने का प्रयास करती रही ........... 

बुधवार, 10 अक्तूबर 2012

हाथ
हर बेटी मानती है कि उसके पिताजी इस दुनिया  का सबसे अच्छे पिता  हैं ,उन जैसा कोई दूसरा हो ही नहींसकता .मुझे भी यही विश्वास  है .मेरे बाबूजी जैसा कोई नहीं सारे संसारमें .कोई समस्या हो ,कोई प्रश्न हो 
सबका हल बाबूजी के पास ....आज मैं  जहाँ हूँ जैसी भी हूँ बाबूजी की वजह से ...मैं इस  ऋण से  कभी भी उऋण नहीं हो पाऊँगी .यदि कई जन्म होते है तो हर जीवन में आपको ही पिता रूप में पाऊ .... 
 मैने कल रात  
एक सपना देखा
सपने में बाबूजी थे,माँ थीं
सभी थे,परिवार था
और सबसे साफ़ थे
बाबूजी के हाथ।
उनकी सख्त उंगलियो 
के बीच
मेरी  नरम हथेली
एक सुदृढ़  आश्रय।
संयत,कोमल पर दृढ़ .
उनको पकड़ते ही 
बिना हिले-डुले
मेरे पाँव उठ जाते
मंजिल के  पार,
आत्मविश्वास के साथ .  
 पीठ पर
उनकी हथेलिओं का अहसास
 कभी सांत्वना से भरा 
कभी उत्साह जगा देता  
तो कभी सर पर
नरमी से पड़
करता  दुलार .
कभी दृढ  ऊँगली  
उठ पड़ती
मनाही की सलाह देती.
हर बार असरदार
उन हाथों के बलबूते
ज़िन्दगी यहाँ पहुँच गयी......
आँख खुली तो याद आया
कल ही तो
बैंक मैनेजर  ने बताया
आपके बाबूजी के हाथ
अब लिख नहीं पाते
बहुत है हिल जाते
अब कलम नहीं पकड़ पाते 
कमज़ोर हो गए है 
इसलिए अंगूठे से 
चलाना पड़ेगा काम  
गडमड से हुए  चित्र
असहाय सी  काया.
कैसी है ईश्वर की माया।
बाबूजी के हाथ  
अपनी हथेलिओं में थाम 
मन ही मन किया वादा 
एक इरादा ......
और फिर चल पड़ी उस राह पर 
जिस राह को दिखाते रहे 
बाबूजी के हाथ . 

रविवार, 30 सितंबर 2012


आज सुबह-सुबह एक कार्यक्रम देख रही थी.इमरान साक्षत्कार कर रहे थे जाने माने कलाकार विक्टर बनर्जी का..इसी दौरान उन्होंने  एक बहुत ही हृदयस्पर्शी कहानी सुनाई जो इस प्रकार है .....
   'उत्तराखंड  बचाओ आन्दोलन' के समय की बात है.विक्टर उस समय मसूरी में रह रहे थे और आन्दोलन में संलग्न थे, वे बताते हैं  कि  वे  उत्तराखंड के लोगों  के परिश्रमी और निर्मल व्यवहार से बहुत प्रभावित हैं  .उनका मानना है कि  वहां के लोगों  को ईश्वर  का आशीर्वाद है . एक दिन उनका दूधवाला उदय उनके पास आया और बोला साहब मैं  आपको ५ रूपये किलो दूध देता हूँ। रस्किन बोंड साहब को छह में देता हूँ और बाज़ार में सात रूपये में बेचता हूँ.आप मुझे ज्यादा नहीं दे  सकते तो कम से कम रस्किन साहब के बराबर तो दीजिये.विक्टर बहुत शर्मिंदा हुए और बोले मैं  भी यही सोच रहा था और यदि ऐसा है तो मैं  तुम्हारे साथ बहुत अन्याय कर रहा हूँ ..दरअसल मैं ४ साल से खाली बैठा हूँ . कुछ कमा नहीं रहा हूँ इसलिए अभी ६  तो नहीं दे सकता ...उनकी बात पूरी भी न हो पाई कि  उदय ने अपनी बीड़ी  का तेज़ कश लेते हुए कहा,
"ठीक है , साढ़े  चार दे देना...और निर्विकार भाव से चल दिया.  अनपढ़  मात्र दूधवाला और इतना विशाल ह्रदय .......मुझे गर्व है अपने लोगों  पर ....

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

           रोज़ ६.१५ का समय तय है .हम तीनों  नियमानुसार  निकल पडे.तय स्थान है जहाँ शाम को हम walk के लिए जाते है .walk के साथ talk  भी उसी speed से होता है पतियों की बुराई से लेकर बच्चों की पढाई और बाइयों का रोना .......दिन भर की हलचल......सबको साझा करने का वही समय है (ये अलग बात है कि पतले होने की बजाय हमारा वज़न बढ़ता जा रहा है ).
        कल की ही बात है निश्चित  समय पर हम निकल गए .अभी पहला चक्कर लगाते हुए ही हमने अपनी तारीफ की थी किहम अभी भी कितनी स्वस्थ है  हमारे कान आंख और हाथ पैर सब सही सलामत है वरना तो इस उम्र तक आते आते आजकल की महिलाएं रोगों को गले लगा लेती है (गोकि हम बहुत बुज़ुर्ग हों ) 
      थोडा झुटपुट हुआ ही था,बारिश के दिनों में यूँ भी अँधेरा जल्दी हो जाता है गणपति की चहलपहल थी .हम अपनी गप्पों में व्यस्त .... अंतिम चक्कर (कुछ इमारतों के चारों ओर बनी कच्ची  पक्की सड़क पर ही लोग walk   करते है)तभी पीछे से एक हाथ आया और मेरे साथ चल रही महिला के गले में पहनी  सोने की चैन खिंच ली जब तक समझ आता मैं  जोर  से चिल्लाई बाकी दोनों भी चिल्लाने लगी .वह व्यक्ति घबरा गया मैं व्  मेरी दूसरी सहेली उसके पीछे  भागी  घबराहट कि वज़ह से  चेन उसके हाथ से छुट गयी  काफी दूर तक हमने उसका पीछा किया पर वो भाग गया .
         जब ये घटना घटी उस समय जिस ओर वो भगा उस सड़क पर दो नौजवान थे....... थोड़ी दूरी पर दो watchman  बात कर रहे थे .......बिल्डिंग के पास एक महिला अपने  बच्चे को घुमा  रही थी .....सामने से दो अधेड़  उम्र पुरुष आ रहे थे ......सबने हमे सलाह दी कि सोना पहनकर मत निकला करो .......     

बुधवार, 12 सितंबर 2012

उम्र ..........

आओ समय मैं सहेज लूँ
बंद कर अपनी हथेली
ताउम्र न खुले ये पहेली .....
जान भी न पाए कोई
क्यों हुए  थे गाल  गुलाबी .
क्यों नशे में बंद आंखे
क्यों छाई  थी वो लाली।
याद कर कर के वो शर्माना .
बस  धीरे  से मुस्काना
कही खो जाना ,गुम  हो जाना
रातों को जागते रहना
उजाले में भी घबराना
कभी  बाते  न  करना 
कभी उड़ाने आसमानों की
कभी  महफिले सजती ,कभी  
न कोई साथी न सहेली
कोई कहता लड़कपन
कोई समझे मनमौजी
नाज़ुक सी उम्र के वो सपने
सुहाने मोड़ जीवन के
उम्र सोलह की वो अलबेली
आओ समय मैं सहेज लूँ
बंद कर अपनी हथेली
ताउम्र न  खुले ये पहेली।।।।।।।


मंगलवार, 11 सितंबर 2012

           फिर बेटी ने कहा
माँ मुझको भी आने दो, अपनी गोद सजाने दो 
बनकर आसमान में चंदा ,चांदनी से भर दूंगी 
बनकर असमान का सूरज ,मैं रौशनी कर दूंगी 
बनकर फूलों की पंखुडिया, अपनी गोद सजाने दो 
आने दो माँ ,आने दो माँ ,अपनी गोद सजाने दो
तितली बनकर आसपास ,जब मैं  लहराऊंगी
लाल लाल होठों से माँ - माँ कर गाऊँगी
रातों को न जगाउगी माँ ,तुमको न कभी सताउंगी
एक बार आने दो माँ, अपनी गोद सजाने दो 
मैं परछाई हूँ तुम्हारी,  कैसे खुद से दूर करोगी 
क्या लोगों के तानो से तुम ,अब भी डरोगी
मुझको मारकर -मरवाकर क्या तुम जी सकोगी 
मुझ को देकर जन्म माँ ,जीवन का गीत गाने दो .
एक बार आने दो माँ अपनी गोद सजाने दो  

रविवार, 2 सितंबर 2012

        कल अचानक उनकी मृत्यु का समाचार मिला .कुछ भी असामान्य  नहीं था. ८० की उम्र में मृत्यु .....सुनकर उतना दुःख नहीं होता.  हाँ अपनों को खोने  की कसक तो हमेशा रहती है.बहुत पहले मिलना हुआ था बुआ से पर फूफाजी से नहीं के बराबर मुलाकात होती. यू तो बुआ से रिश्ता कोई बहुत पास का न था पर उनके और हमारे परिवार के बीच सालों से प्रगाढ़ सम्बन्ध थे . .बुआ का स्वभाव ऐसा की परायों को भी अपना बना लें..पिताजी के कई  किस्सों में समायी बुआ  के लिए हमेशा सम्मान  रहा .उनकी बातें सुनने को हमेशा दिल करता. आज भी फूफाजी से ज्यादा बुआ के बारे में जानना चाहा क्या बुआ रोई.या बुआ ने कैसे दुःख व्यक्त किया....बुआ को देख कर हमेशा यही लगता कि दुःख और बुआ का कोई रिश्ता हो ही नहीं सकता (बुआ और दुखो का चोली दामन का साथ था )पर बुआ इतनी हिम्मती   थी कि  उनके दुखी होने की कल्पना  कभी की ही नहीं जा सकती...पेशे से वैज्ञानिक बुआ सदैव  हमारी प्रेरणा रही कि अचानक फूफाजी की  मृत्यु का समाचार ....
          कुछ भी असामान्य नहीं ८० की उम्र ......पूरी उम्र खायी है फूफाजी ने पर कुछ ऐसा कर गए फूफाजी की सर नतमस्तक  हो गया. बहन ने खबर दी फूफाजी अपना पार्थिव शरीर दान कर गए .सुना मेडिकल कॉलेज को दान कर दी अपनी देह ....कहकर कि  मैं  नास्तिक हूँ मैं  कर्म कांडों में विश्वास नहीं करता ...विस्वास नहीं होता ....समाज ने अस्वीकार कर दिया कही ऐसा होता है जब तक देह जलाई न जाये मुक्ति मिलती है ....पर बुआ फूफाजी के निर्णय पर अडिग रही कि  देह तो मेडिकल के विद्यार्थियों  की पढाई के ही काम आनी है ...अंतत फूफाजी के निर्णय  का सम्मान किया गया और पार्थिव देह रवाना  हुई मेडिकल कॉलेज को .फूफाजी आपने इस उम्र में भी आज़ादी की ६५वि वर्षगांठ को एक सच्चे  सिपाही की तरह देश को अपना सर्वस्व  दे दिया और हमे जीने और जीवन का महत्त्व सिखा दिया......श्रद्धांजलि

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

नींद
 sleeping cats
आज खुमारी सी छाई है
शायद बहुत दिनों के बाद,नींद आई है ......
आज बारिश हुई है फिर से कहीं
अभी-अभी खबर ये आई है
महकी हुई है खुशबु से
हर ग़ज़ल जो हमने गाई है 
यूँ तो कहते हैं  सपने आते है
 नींदों में.  हमने तो
हरदम  उनीदी आँखों में
सपनो की दुनिया सजाई है.......
रात दिन  जाग-जाग कर हमने
लाख -लाख सपने सजाये है
तुम कहते हो हमारी आंखों में
लाली सी क्यों ये छाई है .......
कभी टूटे,कभी बिखरे
कभी खोये,कभी संजोये
ढेरों वादों की किताबे
लिखी-लिखाई हैं ......
तुमने आज देखा
पलकों को मूंदे हुए
और  एलान किया
कि हमको नींद आई है
 तुम क्या जानो कि हमने  तो
बरसों से ख्वाबो की
महफिलें सजाई है .........

रविवार, 15 जुलाई 2012


पर तुम नहीं आये .......
क्या विवाह की रस्म ,लिए दिए वचन प्रेम की कसौटी है ? लगभग ७५% लोग तो वास्तव में जीवन अकेले जीते है ,क्या गृहस्थ और प्रेम एक दूसरे का पर्याय है?या प्रेम एक भाव है और गृहस्थी एक जिम्मेदारी ....या दोनों एक है ?
meditating-reflecting-solitude.jpg (430×323)
सालों से अबतक 
इंतज़ार रहा 
पर तुम नहीं आए ........
बस सप्तपदी फेरे तक का साथ रहा 
उसके बाद हर दिन राह देखती रही
पर तुम नहीं आए.........
यू तो वचन दोनों ने लिए थे 
मुझको सब था याद  
पर तुमको कुछ याद नहीं  
और तुम नहीं आये...........
रिम झिम बारिश की रातों में,
जागी  रही सोयी नहीं 
अंधरों को ताकती रही 
पर तुम नहीं आए............
एक निवाला मुंह  तक गया 
दूसरे पर तुम्हारा इंतज़ार किया 
पर तुम नहीं आये........
तुम्हारे हर  जन्मदिन पर
लम्बी उम्र की दरकार रही 
देर तक दीप जलाये 
बैठी रही ,पर तुम नहीं आये .......
दिन भर होठो में मुस्कराहट लिए 
लोगों को जताती रही
झूठी प्रेमकहानी सुनाती रही 
तकिये पर औंधे सर रखकर 
कितने आंसू बहा दिए 
जीवन की साँझ भी आ गयी
पर तुम नहीं आये .........

गुरुवार, 12 जुलाई 2012


प्रेम 









कुछ देर और खामोश बैठो 
कि दिल की जुबान कुछ कहना चाहती है 
कोई गीत होंठों  से निकल न जाएँ
कि दिल की धड़कन कुछ गुनगुनाती है .
महसूस करो  इस प्यार की कशिश
नर्म हथेलिओं की रेखाओं  का मिलना 
बंद आंखों से देखने की कोशिश 
लरजते बादलों के बीच कौंधती बिजली .
कि कहीं  हुई बारिश से 
भीगी मिटटी की मीठी खुशबू.
पूरब से निकले सूरज की मासूमियत 
या कि गहराई  रात में निखरी चांदनी की कसक
सम्हल सम्हल के चलती हवा के झोंके  
या कि  ताज़ी मेहँदी  की खुशबूं से
निखरे हाथों की लुनाई.
कुछ देर खामोश बैठो 
जीवन के रंग सुंदर  कुछ देर और जी लो ...........

बुधवार, 4 जुलाई 2012



बस यूँ ही आँख बंद किये 
आँगन में बैठी
धूप पी रही थी
कि एक नन्ही सी तितली
काली पीली धब्बो वाली
बांह पर  आकार बैठ गयी
और बार बार 
पंख फडफडा कर 
अपना अस्तित्व जताने की
कोशिश करती रही .
हवा का झोंका,
मेरी सांसो की गति, 
उसे उड़ा न सकी 
मैं उनींदी आँखों से 
देखती रही उसे
 निहारती रही 
मैं हिलाना नहीं चाहती थी उसे 
उड़ाना भी नहीं चाहा 
न उसे पकड़ना चाहा
 न उसे डराना चाहती थी 
बस महसूस करती रही 
प्रकृति के उस 
अदभुत सौंदर्य को........... 

गुरुवार, 28 जून 2012

उम्मीद

दिन भर में कई चेहरे ऐसे दिखते है जो निराश,हताश हो चुके है.ज़िन्दगी कभी कभी किसी के लिए इतनी निष्ठुर क्यों हो जाती है .काश कि एक उम्मीद का दीया  उस ज़िन्दगी में  जला सकूँ ...
जब  भी देखती हूँ 
तुम्हारी आंखों में 
खो जाती हूँ
दर्द की गहराई में
उतरती जाती हूँ गहरे 
और गहरे 
अकेलेपन के सागर में.
खोजती  हूँ
जो जीवन की ललक को . 
तो पाती हूँ बहुत  असहाय
अकेली
बचने  के सभी रास्ते
बंद पाती हूँ .
निराशा और अंधेरे के
समंदर में
खोने लगा है
वजूद अब मेरा
तुम्हे  बाहर लाने की
तवज्जो में
तार तार होती
ज़िन्दगी को
बचाने की कवायद
करनी होगी.
इतना तो समझ आया  
कि उम्मीद का दामन
फिर किसी एक सिरे से
पकड़ना होगा .
रेशम के  तारों सी  
उम्मीदों की चादर  को 
फिर से बिनना होगा
वीराने से असमानों को
सतरंगी रंगों से
सजाना होगा .
नया सूरज लाना होगा
तारों को मानना होगा
ज़िन्दगी को एक बार
फिर से
सजाना ही होगा.............
 
 
 
 

मंगलवार, 19 जून 2012


1 june2012.......
अट्ठारह वर्ष यूँ ही गुज़र गए
 आज भी याद है कैसे
 नवेली दुल्हन बनकर आई 
 तुम्हारी आंगन में
कितना शरमाई थी 
कितना घबराई  थी न जाने
कैसे निभेगा जन्मों का साथ 
माँ ने कहा था  जब बांधी थी
 दुपट्टे में गांठ 
अब है निभाना ज़िन्दगी भर  साथ 
और तब से चाल रहे है साथ 
क़ि इतने वर्षों का संकलन 
इतने वर्षों का साथ 
इतनी ऋतुओं का आना और जाना 
न जाने कैसे गुज़र गए
 इतने वर्ष 
तुम्हारी हाथों की पकड़
 कभी कमज़ोर न हुई 
तुम्हारी  आंखों की चमक
 कभी फीकी न पड़ी 
बस अबोले से होंठ 
 करते रहे वादा
जो जन्मो का संगम है
 सदा है निभाना ..............

रविवार, 27 मई 2012








समुंदर की लहर 
बड़ी बेआबरू है जी 
बेलिहाज होकर 
यू ही इतराती 
बलबलाती है, बलखाती 
चली आती है 
न जाने कैसे
किस छोर से 
पागल,
 मिटा कर चली जाती है 
समुंदर की लहर देखो .
कभी गाती कभी डराती
कभी बुलाती अपनी ओर 
कभी उथली कभी धुंधली 
नागिन सी ये
 बलखाती चली आती है 
समुंदर की लहर देखो .
कभी सिमटी कभी बिखरी
 कभी नखरे दिखाती 
 पावों में लिपट जाती 
अधूरी  सी  कभी  पूरी 
समुंदर की लहर देखो. 
कोशिश मैने भी बहुत की
रेत में नाम लिखने की 
 मिटा कर  चली गयी
नाम की गहराई  पर
समुंदर की लहर  देखो
कई घरोदे  भी बने होंगे
कई सपने सजे होंगे 
पर इसे क्या फिकर 
ये नहीं किसकी 
समुंदर की लहर देखो..............
 


सोमवार, 30 अप्रैल 2012

milan


ठहर  जा शाम 
कुछ पल और     
अभी होना है मिलन बाकी
धरा और सूरज का
गुलाबी  रंगतों में डूबना है
धरा को 
कि आते ही शुरू होगी 
चंदा की मधुर शरारत 
किसी ओट से करेगा वो
एक कोशिश सताने की 
कहीं लजा न जाये
दुल्हन सी धरा अलबेली 
समेटे जो हरी चुनरी 
छिपाए नूर सा चेहरा 
अधखुली आँखों से 
बाट जोहती है
न जाने कबसे 
सजाये स्वप्न, न जाने
कितनी रातों को
 मेहँदी रचे हाथों से
 गुंथी माला 
विकल सी है 
प्रतीक्षा में 
अधूरा रह जाये
ये मिलन 
ठहर थोड़ी देर 
कि रात बाकी है ....
झुका  है आसमा भी देख 
सागर ने धरा है मौन 
कही बाधित न कर दे 
कोई हवा का झोका 
पल का मिलन संगम
कि चाँद आने वाला है ........

शनिवार, 28 अप्रैल 2012

मेरा जन्म मुक्तेश्वर की सुरम्य वादियोंमें हुआ. मुक्तेश्वर को भूल पाना ,पल भर भी बिसराना मेरे लिए मुश्किल है .मैं हर पल वहा की हवा को अपने भीतर महसूस करती हूँ ........
हिमालय की सुर्ख 
सफ़ेद पर्वत श्रखलाओं  के नीचे
 हरे देवदार के दरख्तों के बीच
 बुरुंश के लाल फूलों की छटाएं
सफ़ेद  और गुलाबी फूलों से 
लकदख आड़ू-खुबानी के वृक्ष 
काफल-पाको  की 
मधुर ध्वनि का आमंत्रण 
 या कि शिव मंदिर में
 सुबह, दोपहर और ब्रह्ममुहूर्त  में बजता
 घंटिओं का सरगम 
ऊँची पहाड़ी से दिखती 
सर्पीली सड़कों का मंज़र 
जीवन के अंधकार में
 मुखरित  हो 
यहाँ कई मील की दूरी में 
बंद आंखों से चलचित्र 
बन कई बार
 बिना भूले याद दिलाता है
 आज भी प्रकृति से मेरा रिश्ता
 उतना ही गहरा है
 जितना प्रकृति की गोद में 
जन्म लेते समय था .
मित्र 
चलो दोस्त , 
कुछ फुर्सत मिली है 
बिता लें लम्हे साथ  
कुछ बातें 
कुछ किस्से 
कुछ यादें .
कुछ पल और जी ले 
खिलखिला के हंस ले .
दिलों के जोड़-तोड़ 
तमाम बंध खोल  
पंछी से उड़ लें 
समय के आसमान में.
थोड़ी सी और दूरी 
जो रह गयी थी अधूरी 
तय कर ले चलते चलते 
 सागर के साथ साथ .
चंदा की रौशनी में 
एक और कहानी 
तुमको है सुनानी .
वरना तो  व्यस्त कर देंगे
फिर से घर के चूल्हे 
बच्चों  की  किताबें 
राशन की   फेहरिस्त
मेहमानों की आवाजाही 
बस की लम्बी लाइन 
घर से काम और
काम से घर तक की दौड़ 
जिन्दंगी  की आपाधापी
सालों का लम्बा सफ़र 
सालों तक चलने वाला 
कि एक पल भी मिले फुर्सत 
तो जी ले जिंदगी 
चलो दोस्त 
कुछ कर लें बाते प्यारी 

रविवार, 25 मार्च 2012

क्या बनोगी ?
बचपन में जब भी मैं अपनी बेटी से कहती" क्या बनोगी " उत्तर होता "माँ "
थोड़ी बड़ी होने पर उत्तर होता "बाई ".उसकी मासूमियत पर हम खूब हंसते .अब वो और बड़ी हो गयी है कि अब तय करना होगा वास्तव में उसे क्या बनना  है? फिर हमारा  जीवन भौतिकता की  चपेट में कुछ इस तरह  है कि भावनाएं  कही गुम हो जाती है.  इसी उहापोह में क्या हम जान पाते  है हमारे बच्चों  के भीतर क्या चल रहा है ,उन्होने कौन सी दुनिया अपने लिए तय की है ............
 
मैने बिटिया को डांट लगायी
अगर नहीं करोगी पदाई...
तो बन जाओगी बाई.
कुछ तो होश करो,
किताबों को खोलो,
और बांचना शुरू करो .
बिटिया बहुत जरुरी है पढना
अगर अभी नहीं सुधरोगी
तो जीवन भर पछताओगी
चार साल पढ़ोगी
तो चालीस साल कमाओगी
जीवन के सब सुख पाओगी
गाड़ी,जेवर और कार
साथ मिलेगा पति का प्यार
जो न पढ़ पाओगी
नहीं कभी गुन पाओगी
न रोटी न कार
सिर्फ मिलेगी फटकार
पशु सा जीवन पाओगी
सिर्फ बाई बनकर रह जाओगी........
भोली भाली बिटिया बोली
माँ, बाई बनना स्वीकार
हरी चुडिया लाल चुनरिया
पहनकर घर सजाउंगी
तुमसे पाए संस्कार को
आगे और ले जाउंगी
छोटा सा ही होगा घर तो पर
प्यार जहाँ का पाऊँगी
माँ, बेटी बनकर ही बस
सेवा सबकी कर जाउंगी
पाकर कार और जेवर माँ
तुमसे और दूर हो जाउंगी
कम से कम बाई बनकर
पास तुम्हारे रह पाऊँगी
गले लगाकर रही बहाती
धार आंसुओं की मैं माँ
कैसे समझाउं इस नादाँ को
जीवन की कटु सच्चाई ...........

शनिवार, 17 मार्च 2012


बहुत दर्दनाक है बेवक्त पति की मौत के सदमे से उबरना एक पत्नी के लिए .....यू तो किसी भी एक साथी का जाना जीवन में खालीपन भर देता है एक मित्र के पति की मृत्यु ने बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर दिया .मृत्यु की वास्तविक  भयावहता ने हिला कर रख दिया ,इश्वर उसे शक्ति दे इस हादसे से उबरने की 
 
एक और पति की मृत्यु हो गयी 
और साथ ही पत्नी भी बेमौत मर गयी 
पति रिक्त कर गया 
पत्नी के जीवन की सुबह और साँझ 
और साथ में 
रिक्त हो  गयी  उसकी रसोई 
रसोई का चूल्हा 
जो सुबह शाम जलता था
आस में, एक विश्वास में 
था तो सिर्फ दो निवालों का साथ  
बहुत कुछ तो न था पास 
पर बहुत थी  आस 
अगली सुबह का भरोसा 
अगली शाम का सुकून 
ताउम्र का था वादा 
कैसे टूट गयी वो सांस 
बचा रह गया तमाशा
 सलवटों की कहानी ,
थी उम्र भर निभानी 
कैसा है ये खेला
 क्यों रह गया अकेला 
एक साथी का जाना 
मानो सुरों का जाना 
जीवन का गीत पूरा 
रह गया अधूरा .........