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गुरुवार, 12 जुलाई 2012


प्रेम 









कुछ देर और खामोश बैठो 
कि दिल की जुबान कुछ कहना चाहती है 
कोई गीत होंठों  से निकल न जाएँ
कि दिल की धड़कन कुछ गुनगुनाती है .
महसूस करो  इस प्यार की कशिश
नर्म हथेलिओं की रेखाओं  का मिलना 
बंद आंखों से देखने की कोशिश 
लरजते बादलों के बीच कौंधती बिजली .
कि कहीं  हुई बारिश से 
भीगी मिटटी की मीठी खुशबू.
पूरब से निकले सूरज की मासूमियत 
या कि गहराई  रात में निखरी चांदनी की कसक
सम्हल सम्हल के चलती हवा के झोंके  
या कि  ताज़ी मेहँदी  की खुशबूं से
निखरे हाथों की लुनाई.
कुछ देर खामोश बैठो 
जीवन के रंग सुंदर  कुछ देर और जी लो ...........

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